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Showing posts from January, 2022

पार्किन्संस और जीवन शैली - 8

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जब यह पता लगता कि व्यक्ति को पार्किन्संस हो गया है तो उसे भय, निराशा, चिंता होना स्वाभाविक है। व्यक्ति भविष्य की आशंकाओं से डर कर परेशान हो जाता है। लेकिन मरीज और उसका परिवार भय और आशंकाओं से उबर कर जितनी जल्दी अपने जीवन में सकारात्मक सुधार ला कर इस बीमारी से निबटने की तैयारी करेंगे उतनी ही जल्दी उनका जीवन वापिस पटरी पर लौटेगा और भविष्य में होने वाली समस्याओं को नियंत्रित किया जा सकेगा।  जीवन खत्म हो गया, अब क्या करेंगे की बजाय जीवन एक चुनौती है जम कर सामना करेंगे की ओर चलें। पूरे चौबीस घंटे का शेड्यूल बनाएं और उसका सख्ती से पालन करें क्योंकि अब गलती करने की गुंजाइश नहीं होती है। यदि मरीज खुद उतना मोटिवेटेड नहीं है तो घर का कोई एक सदस्य आगे बढ़कर यह जिम्मेदारी ले और बाकी सदस्य उसको सहयोग करें। मरीज की जिम्मेदारी आपस में सोच-विचार करके किसी एक सदस्य को लेनी चाहिए और बाकी को उसकी मदद करनी चाहिए। कई बार आपस में कोऑर्डिनेशन न होने पर परिवार के सदस्य दिल से भला चाहने पर भी मरीज की उतनी मदद नहीं कर पाते जितनी उनकी क्षमता होती है।  जहाँ तक संभव हो प्राकृतिक वातावरण में रहने की को...

पार्किन्संस और भोजन - 7

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जब किसी को पता चलता है कि उसे पार्किन्संस हो गया है तो वह बदहवासी में हर तरह के उपायों की तरफ जाता है, हर प्रकार के विशेषज्ञों का दरवाजा खटखटाता है। उसकी परेशानी और भय का लोग फायदा भी उठाने लगते हैं, और इसी दौर में आते हैं भोजन विशेषज्ञ, डायटीशियन और खाने के जादूगर जो भोजन से हर समस्या चुटकियों में हल कर देते हैं। वह दावा करते हैं कि उनकी सलाह से भोजन करने, खास तरह के सुपरफूड लेने से सारी बीमारी गायब हो जाएंगी और वह मरीज मैराथन में भाग लेने लायक हो जाएगा।  वास्तविकता यह है जब तक हमको पार्किन्संस का पता चलता है उसके लिए जिम्मेदार कोशिकाएं काफी हद तक नष्ट हो चुकी होती हैं या उनमें गड़बड़ी आ चुकी होती है। अभी तक हमारे पास कोई ऐसा तरीका नहीं है जिससे हम उनको वापिस ठीक कर सकें, चाहे हम कोई भी सुपरफूड खा लें या किसी भी तरफ का डाइट प्लान फॉलो कर लें। लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि इस बीमारी में भोजन का कोई महत्व नहीं है। सही भोजन मरीज को कई तरह की समस्याओं से बचाता है और बीमारी के गंभीर होने की गति को धीमा करने में भी बाकी उपायों के साथ योगदान देता है। पार्किन्संस के मरीज के खाने-पीने म...

पार्किन्संस होने पर क्या करें - 6

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जब किसी व्यक्ति को यह पता चलता है कि उसे पार्किन्संस हो गया है तो यह उसके और उसके घरवालों/ प्रियजनों के लिए एक आघात की तरह होता है। सबसे बड़ी बात जो मरीज को सताती है वह यह है कि अब वह कभी ठीक नहीं होगा और आगे दिनों-दिन उसकी हालत बिगड़ती जाएगी। असहाय हो जाने का अहसास उसे सताने लगता है। उसके घरवाले भी परेशान हो जाते हैं कि कैसे सब चीजों को मैनेज करेंगे।  इसमें कोई शक नहीं है कि यह बीमारी काफी जटिल है, इसका कोई क्योर या पूरा इलाज नहीं है लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं है कि इसे मैनेज नहीं किया जा सकता। इस बीमारी को ठीक से मैनेज करने और जहाँ तक संभव हो अपने जीवन की गुणवत्ता को बचाए रखने और बीमारी के लक्षणों को गंभीर होने से रोकने के लिए हमको एक प्रभावी, विस्तृत और समुचित योजना की जरूरत होती है। आज हम इसी के बारे में बात करेंगे।  सबसे जरूरी है सही विशेषज्ञों का चयन। सबसे पहले आपको एक ऐसा न्यूरोलॉजिस्ट चुनना चाहिए जिसके साथ आपको सहज महसूस होता हो और जिसे पार्किन्संस के इलाज और पुनर्वास (रिहैब्लिटेशन) का अनुभव हो। इसके साथ ही होलिस्टिक एप्रोच अपनाते हुए आपको दूसरी पैथियों जैसे प्...

पार्किन्संस की बीमारी - 5

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  पार्किन्संस का निदान या डायग्नोसिस कोई भी ऐसा परीक्षण, टेस्ट या उपकरण नहीं है जिससे पार्किन्संस का पता लगाया जा सके। लक्षणों के आधार पर न्यूरोलॉजिस्ट इसका निर्धारण करता है। कई रोग इससे मिलते-जुलते लक्षणों के भी हो सकते जिनमें एक न्यूरोलॉजिस्ट ही भेद कर सकता है। इसलिए सबसे जरूरी है कि पार्किन्संस का कोई भी लक्षण या लक्षणों के समूह का हल्का सा भी अंदेशा होने पर तत्काल न्यूरोलॉजिस्ट से मिल कर रोग का निदान किया जाए। कभी-कभी न्यूरोलॉजिस्ट स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिए कुछ ब्लड टेस्ट, एमआरआई आदि की सलाह दे सकते हैं । इसके अलावा पार्किन्संस के उपचार के लिए दी जाने वाली दवाओं से मरीज के लक्षणों में कमी आना भी डायग्नोसिस को सही साबित करता है। पार्किन्संस का उपचार  दुःख की बात यह है कि अभी तक पार्किन्संस को ठीक करने वाला कोई उपचार नहीं मिल पाया है। लेकिन दवाओं से लक्षणों में कमी आ जाती है और मरीज लम्बे समय तो अपने रोग को मैनेज कर सकता है। इसमें आमतौर पर न्यूरोलॉजिस्ट निम्मलिखित दवाओं का प्रयोग करते हैं:- ऐसी दवाएं जो मस्तिष्क में डोपामिन का स्तर बढ़ा देती हैं।  गति करने...

पार्किन्संस की बीमारी - 4

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  पार्किन्संस का कारण   पार्किन्संस के कारणों के बारे में अभी तक कोई भी ठोस जानकारी नहीं है लेकिन निम्नलिखित कारकों का थोड़ा-बहुत प्रभाव माना जाता है :- जीन्स - शोधकर्ताओं ने कुछ ऐसी जीन्स का पता लगाया है जो पार्किन्संस के लिए जिम्मेदार हैं। लेकिन यह सिर्फ उन्हीं कुछ मामलों में होता जहाँ परिवार में पार्किन्संस का अच्छा-खासा इतिहास है। बाकी मामलों में जीन्स के माध्यम से कोई भी सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।  वातावरण संबंधी कारक - कुछ टॉक्सिक तत्वों के संपर्क आने से बाद में पार्किन्संस का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन इनका प्रभाव सीमित ही है।    पार्किन्संस के रिस्क फैक्टर    किसे पार्किन्संस होगा इसकी ठोस भविष्यवाणी करना असंभव है। फिर भी कुछ रिस्क फैक्टर हैं। आयु - आयु बढ़ने के साथ पार्किन्संस होने का खतरा बढ़ता जाता है। आमतौर पर यह 60 साल की आयु के बाद ही होता है।  लिंग - पुरुषों को पार्किन्संस होने का खतरा महिलाओं से ज्यादा होता है।  आनुवंशिक - यदि आपके किसी नजदीकी परिवारजन को पार्किन्संस है तो आपको इसे होने का खतर...

पार्किन्संस की बीमारी - 3

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  पार्किन्संस के प्रकार  इडियोपेथिक पार्किन्संस - इसे ही आम तौर पर पार्किन्संस के नाम से जाना जाना जाता। यहाँ इडियोपेथिक का अर्थ है जिसका कारण अज्ञात हो। वेसक्युलर पार्किन्संस - यह तब होता है जब मस्तिष्क होने वाले रक्त की आपूर्ति में कोई बाधा आती है। माइल्ड स्ट्रोक के शिकार लोगो में यह होने की संभावना हो जाती है।  ड्रग इंड्यूस्ड पार्किन्संस - यह किसी दवा के साइड इफ़ेक्ट से होता है। स्किट्ज़ोफ्रेनिया तथा अन्य मानसिक रोगों के उपचार में प्रयोग होने वाली दवाओं से यह हो सकता है। लेकिन यह प्रायः अस्थायी होता है और दवा बंद करने या कुछ समय बाद ठीक हो जाता है। जुवेनाइल पार्किन्संस - यह एक दुर्लभ प्रकार है जिसमें 21 वर्ष की उम्र से कम में पार्किन्संस हो जाता है।  यंग ऑनसेट पार्किन्संस - यह भी कम ही पाया जाने वाला प्रकार है जिसमें 40 वर्ष से कम की उम्र में ही पार्किन्संस हो जाता है।  (जुवेनाइल पार्किन्संस और यंग ऑनसेट पार्किन्संस में अक्सर जेनेटिक कारण ज्यादा होते हैं और परिवार में इसका इतिहास होता है)  अन्य प्रकार के पार्किन्संस - कुछ ऐसी ...

पार्किन्संस की बीमारी - 2

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  पार्किन्संस के लक्षण  पार्किन्संस के शुरुआती लक्षणों को पहचानना आसान नहीं है। उनको अक्सर बढ़ती उम्र, कमजोरी आदि के लक्षण मान लिया जाता है और काफी बढ़ जाने बाद ही बीमारी का पता चलता है। पार्किन्संस से मिलते जुलते लक्षणों का उल्लेख काफी प्राचीन ग्रंथों में भी है लेकिन इस बीमारी का नाम जेम्स पार्किन्संस के नाम पर रखा गया जिन्होंने 1817 में पहली बार इसे स्नायु तंत्र की एक बीमारी के रूप में प्रस्तुत किया।  प्रमुख तौर पर पार्किन्संस के लक्षण निम्नलिखित हैं :-  कंपन - यह पार्किन्संस का सबसे जाना-पहचाना लक्षण है। यह किसी भी अंग में हो सकता है, यहाँ तक कि सिर्फ एक ऊँगली में भी हो सकता। लेकिन यह जरूरी नहीं कि यह सभी मरीजों हो।  धीमा हो जाना - काम करने, चलने, कुर्सी से उठने या कोई और गतिविधि करने की गति में कमी आना या थकावट का अनुभव होना एक आम लक्षण है। कई बार यह शुरू में ही नोटिस होता और कई बार यह बाद में बढ़ता है। मांसपेशियों की लचक में कमी - शरीर के किसी भी भाग की माँसपेशी में कड़ापन आ जाना, उसका स्वाभाविक लोच कम हो जाना। यह दर्द के साथ भी हो सकता औ...

पार्किन्संस की बीमारी - 1

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  पार्किन्संस का नाम सुनते ही कई तरह की छवियां हमारी आँखों के सामने तैर जाती हैं। अधिकांश में एक असहाय वृद्धा या वृद्ध होता है जो चल नहीं पा रहा, खा नहीं पा रहा या मानसिक संतुलन खो जाने के कारण अजीब हरकतें कर रहा हैं। इन आधी-अधूरी छवियों के अलावा हमको आमतौर पर पार्किन्संस के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं होता। इस बीमारी के बारे में जानकारी का अभाव आम लोगों में तो है ही, कई बार चिकित्सा विषेशज्ञों में भी बहुआयामी एप्रोच और संवेदनशीलता का अभाव होने के कारण मरीज के जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना कर पाना उनके और उनके परिवारजनों के लिए बहुत ही कठिन हो जाता है। रही-सही कसर सपोर्ट सिस्टम का अभाव पूरा कर देता है; संस्थाएं सरकारी हों या गैर सरकारी, कहीं से भी प्रभावी सहयोग मिल पाना आसान नहीं होता।  आंकड़ों के मुताबिक 2016 में भारत में पार्किन्संस के लगभग 5,80,000 मरीज थे। उसके बाद से मरीजों की संख्या में काफी वृद्धि हो चुकी होगी और सही आंकड़े भी हमारे पास उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि अब भी बहुत सारे मरीज रिपोर्ट ही नहीं हो पाते। लेकिन एक बात तो साफ ही है कि भारत में इस बीमारी के मरीज बढ़त...