पार्किन्संस की बीमारी - 3

 


पार्किन्संस के प्रकार 

इडियोपेथिक पार्किन्संस - इसे ही आम तौर पर पार्किन्संस के नाम से जाना जाना जाता। यहाँ इडियोपेथिक का अर्थ है जिसका कारण अज्ञात हो।

वेसक्युलर पार्किन्संस - यह तब होता है जब मस्तिष्क होने वाले रक्त की आपूर्ति में कोई बाधा आती है। माइल्ड स्ट्रोक के शिकार लोगो में यह होने की संभावना हो जाती है। 

ड्रग इंड्यूस्ड पार्किन्संस - यह किसी दवा के साइड इफ़ेक्ट से होता है। स्किट्ज़ोफ्रेनिया तथा अन्य मानसिक रोगों के उपचार में प्रयोग होने वाली दवाओं से यह हो सकता है। लेकिन यह प्रायः अस्थायी होता है और दवा बंद करने या कुछ समय बाद ठीक हो जाता है।

जुवेनाइल पार्किन्संस- यह एक दुर्लभ प्रकार है जिसमें 21 वर्ष की उम्र से कम में पार्किन्संस हो जाता है। 

यंग ऑनसेट पार्किन्संस - यह भी कम ही पाया जाने वाला प्रकार है जिसमें 40 वर्ष से कम की उम्र में ही पार्किन्संस हो जाता है। 

(जुवेनाइल पार्किन्संस और यंग ऑनसेट पार्किन्संस में अक्सर जेनेटिक कारण ज्यादा होते हैं और परिवार में इसका इतिहास होता है) 

अन्य प्रकार के पार्किन्संस - कुछ ऐसी बीमारियां हैं जिनमें पार्किन्संस के लक्षण भी पैदा हो सकते हैं जैसे मल्टीपल सिस्टम एट्रोफी, प्रोग्रेसिव सुप्रान्युकलर पाल्सी या डिमेंशिया विद लूड बॉडी आदि। 

पार्किन्संस की स्टेज या अवस्था 

प्रथम अवस्था - यह बीमारी की पहली स्टेज होती है जिसमें व्यक्ति को बीमारी का पता चलता है। व्यक्ति घबरा जाता है, भविष्य की चिंता घेर लेती है और अक्सर उसे समझ नहीं आता कि वह क्या करे। 

द्वितीय अवस्था - यह बीमारी की दूसरी स्टेज होती है। इसमें सही चिकित्सा मिल जाने पर लक्षणों में आराम आने लगता है और समस्याएं इतनी भारी नहीं होती कि मरीज उनको संभाल न सके।  

तृतीय अवस्था - यह बीमारी की तीसरी स्टेज होती है। इसमें लक्षण थोड़े बढ़ने लगते हैं और अक्सर असंतुलन की समस्या इसी स्टेज में शुरू होती है।      

चतुर्थ अवस्था - यह बीमारी की चौथी स्टेज है। इसमें लक्षणों में वृद्धि होने लगती है और कई तरह की समस्याएं आने लगती है जैसे बोलने में कठिनाई, चलने में दिक्कत, कमजोरी, संतुलन बिगड़ जाना, विभ्रम, याददाश्त में गड़बड़ी आदि। लेकिन फिर भी व्यक्ति पूरी तरफ आश्रित नहीं होता।  

पंचम अवस्था - यह बीमारी की पांचवी और अंतिम स्टेज है। इस अवस्था में मरीज के लक्षण काफी बढ़ जाते हैं और बिना सहायक के वह अपना कोई भी काम नहीं कर पाता है। व्यक्ति पूरी तरह बिस्तर पर भी आ सकता है। जरूरी नहीं है कि हर मरीज इस अवस्था तक पहुंचे और कई बार मरीज पिछली तीन या चार अवस्थाओं में ही लम्बे समय तक रह सकता है।  

क्रमशः 

(डिस्क्लेमर : यह लेख श्रंखला सामान्य जानकारी और जागरुकता के लिए लिखी जा रही है। किसी तरह की चिकित्सकीय सहायता के लिए कृपया विशेषज्ञ से संपर्क करें)

  

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