पार्किन्संस की बीमारी - 1

 


पार्किन्संस का नाम सुनते ही कई तरह की छवियां हमारी आँखों के सामने तैर जाती हैं। अधिकांश में एक असहाय वृद्धा या वृद्ध होता है जो चल नहीं पा रहा, खा नहीं पा रहा या मानसिक संतुलन खो जाने के कारण अजीब हरकतें कर रहा हैं। इन आधी-अधूरी छवियों के अलावा हमको आमतौर पर पार्किन्संस के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं होता। इस बीमारी के बारे में जानकारी का अभाव आम लोगों में तो है ही, कई बार चिकित्सा विषेशज्ञों में भी बहुआयामी एप्रोच और संवेदनशीलता का अभाव होने के कारण मरीज के जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना कर पाना उनके और उनके परिवारजनों के लिए बहुत ही कठिन हो जाता है। रही-सही कसर सपोर्ट सिस्टम का अभाव पूरा कर देता है; संस्थाएं सरकारी हों या गैर सरकारी, कहीं से भी प्रभावी सहयोग मिल पाना आसान नहीं होता। 

आंकड़ों के मुताबिक 2016 में भारत में पार्किन्संस के लगभग 5,80,000 मरीज थे। उसके बाद से मरीजों की संख्या में काफी वृद्धि हो चुकी होगी और सही आंकड़े भी हमारे पास उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि अब भी बहुत सारे मरीज रिपोर्ट ही नहीं हो पाते। लेकिन एक बात तो साफ ही है कि भारत में इस बीमारी के मरीज बढ़ते जा रहे हैं। इसके बावजूद भारत पर आधारित शोध, आंकड़ों और जानकारियों का बहुत अभाव है। 

पार्किन्संस क्या है 

पार्किन्संस मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की एक बीमारी है जिसमें मस्तिष्क की बेसल गैन्ग्लिया में स्थित कोशिकाओं या न्यूरॉन में गड़बड़ी हो जाती है या वह नष्ट हो जाती हैं। यहाँ की कोशिकाएं डोपमीन नामक न्यूरोट्रांसमीटर बना कर श्रावित करती हैं। डोपमीन की कमी होने से शरीर को गति करने, मांसपेशियों के संचालन में कठिनाई होने लगती है और कई तरह के मानसिक और शारीरिक लक्षण पैदा होने लगते हैं। यह बीमारी समय के साथ बढ़ने वाली है, यानी जैसे-जैसे समय बीतता जाता है बीमारी के लक्षण और गंभीर होते जाते हैं। 

क्रमशः 

(डिस्क्लेमर : यह लेख श्रंखला सामान्य जानकारी और जागररुकता के लिए लिखी जा रही है। किसी तरह की चिकित्सकीय सहायता के लिए कृपया विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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