पार्किन्संस और जीवन शैली - 8
जब यह पता लगता कि व्यक्ति को पार्किन्संस हो गया है तो उसे भय, निराशा, चिंता होना स्वाभाविक है। व्यक्ति भविष्य की आशंकाओं से डर कर परेशान हो जाता है। लेकिन मरीज और उसका परिवार भय और आशंकाओं से उबर कर जितनी जल्दी अपने जीवन में सकारात्मक सुधार ला कर इस बीमारी से निबटने की तैयारी करेंगे उतनी ही जल्दी उनका जीवन वापिस पटरी पर लौटेगा और भविष्य में होने वाली समस्याओं को नियंत्रित किया जा सकेगा।
- जीवन खत्म हो गया, अब क्या करेंगे की बजाय जीवन एक चुनौती है जम कर सामना करेंगे की ओर चलें।
- पूरे चौबीस घंटे का शेड्यूल बनाएं और उसका सख्ती से पालन करें क्योंकि अब गलती करने की गुंजाइश नहीं होती है। यदि मरीज खुद उतना मोटिवेटेड नहीं है तो घर का कोई एक सदस्य आगे बढ़कर यह जिम्मेदारी ले और बाकी सदस्य उसको सहयोग करें। मरीज की जिम्मेदारी आपस में सोच-विचार करके किसी एक सदस्य को लेनी चाहिए और बाकी को उसकी मदद करनी चाहिए। कई बार आपस में कोऑर्डिनेशन न होने पर परिवार के सदस्य दिल से भला चाहने पर भी मरीज की उतनी मदद नहीं कर पाते जितनी उनकी क्षमता होती है।
- जहाँ तक संभव हो प्राकृतिक वातावरण में रहने की कोशिश करें। यदि आपका निवास प्राकृतिक वातावरण में न हो तो रोज पार्क जाएं, नैसर्गिक जगहों की यात्रा करें।
- रोजाना कम से कम आधा घंटे की धूप लें। गर्मी के मौसम में सुबह की आधा घंटे की धूप और जाड़ों में आराम से तीन-चार घंटे भी बैठ सकते (सिर और चेहरे को सीधी धूप से बचा कर)। कोशिश करें कि धूप त्वचा पर भी पड़े।
- समय-समय पर अपनी जांच कराते रहें ताकि कोई और बीमारी शरीर में जड़ न जमा पाए। यदि किसी भी बीमारी के लक्षण दिखें तो तुरंत बिना किसी ढिलाई के उसका उपचार/ समाधान करें।
- जहाँ तक संभव हो मरीज के इस्तेमाल की चीजों/ जगहों को फ्रेंडली बनाएं।
- यदि जरूरत हो और क्षमता हो तो योग्य सहायक रखने में न हिचकिचाएं।
- व्यायाम, योग के साथ बैडमिंटन, टेबल टेनिस, क्रिकेट जैसे खेल भी नियमित रूटीन में रखें। वह शरीर और दिमाग को एक साथ व्यायाम देते। क्रॉसवर्ड, पहेली, अंताक्षरी भी खूब खेलें। गाना, बजाना, नाचना, अभिनय करना भी रूचि के अनुसार करते रहें। हॉबी भी बनाएं, जैसे बागवानी, पेटिंग, लिखना आदि।
- मरीज और परिवारजनों को यथासंभव सकारात्मक और हल्का-फुल्का वातावरण बनाए रखना चाहिए।
- मरीज से सख्ती से शेड्यूल का पालन करवाना अच्छी बात है लेकिन मरीज से नाराज होना, उस पर चिल्लाना और क्रोधित होना, उसका अपमान करना बहुत ही नकारात्मक प्रभाव डालता है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि मरीज यह सब जानबूझकर नहीं कर रहा और इस तरह का व्यवहार उस पर और दुष्प्रभाव डालेगा। कई बार मरीज के साथ डील करना आसान नहीं होता, ऐसे में परिवार को लोगों को अपनी सेल्फ-काउन्सलिंग करनी चाहिए और जरूरत पड़े तो विशेषज्ञ की सहायता लेने से नहीं हिचकिचाएं।
अभी तक कोई भी रिसर्च ऐसी नहीं हुई है जो हमको ठीक-ठीक यह बता दे कि क्या करने से हम पार्किन्संस से बचे रह सकते हैं। लेकिन कुछ सामान्य तरीके ऐसे हैं जिससे पार्किन्संस होने की संभावना को कुछ कम कर सकते हैं :-
- सही जीवन शैली अपनाएँ, सेहतमंद भोजन, योग-व्यायाम करें और यथासंभव प्रकृति से सही रिश्ता रखें।
- मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें और कोई समस्या होने पर तुरंत उसका निवारण/समाधान करें।
- एक ही पैटर्न पर जीना दिमाग को कमजोर करता है। अपने को चैलेंज करें, नयी चीजें सीखें, नयी जगहों पर जाएँ, नयी चीजें खाएं, जो मानसिक ढर्रे बन गए हैं उनको तोड़ें।
- अपनी रुचि के अनुसार ऐसे कामों का अभ्यास करें जिसमें शरीर और दिमाग दोनों को एक साथ मिल कर काम कर करते हैं; उनको अपने रूटीन में शामिल करें, जैसे शारीरिक खेल, नाचना, अभिनय करना और शारीरिक संतुलन बनाने वाले व्यायाम आदि।
- बागवानी, संगीत, गायन, हस्तकला, पेंटिंग, केलीग्राफी आदि हॉबी मन को ठीक रखने और मस्तिष्क को सक्रिय रखने में बहुत मदद करती हैं।
- मस्तिष्क को चैलेंज करने वाले व्यायाम भी उपयोगी सिद्ध होते हैं, जैसे आँखे बंद करके चलना, दोनों हाथों से काम करना और दोनों हाथों से लिखने की कोशिश करना, रात में सोने से पहले दिन भर की घटनाओं को याद करना और सभी इन्द्रियों को अलग-अलग टास्क देकर उनको पूरा करना।
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