पार्किन्संस होने पर क्या करें - 6


जब किसी व्यक्ति को यह पता चलता है कि उसे पार्किन्संस हो गया है तो यह उसके और उसके घरवालों/ प्रियजनों के लिए एक आघात की तरह होता है। सबसे बड़ी बात जो मरीज को सताती है वह यह है कि अब वह कभी ठीक नहीं होगा और आगे दिनों-दिन उसकी हालत बिगड़ती जाएगी। असहाय हो जाने का अहसास उसे सताने लगता है। उसके घरवाले भी परेशान हो जाते हैं कि कैसे सब चीजों को मैनेज करेंगे। 

इसमें कोई शक नहीं है कि यह बीमारी काफी जटिल है, इसका कोई क्योर या पूरा इलाज नहीं है लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं है कि इसे मैनेज नहीं किया जा सकता। इस बीमारी को ठीक से मैनेज करने और जहाँ तक संभव हो अपने जीवन की गुणवत्ता को बचाए रखने और बीमारी के लक्षणों को गंभीर होने से रोकने के लिए हमको एक प्रभावी, विस्तृत और समुचित योजना की जरूरत होती है। आज हम इसी के बारे में बात करेंगे। 

  1. सबसे जरूरी है सही विशेषज्ञों का चयन। सबसे पहले आपको एक ऐसा न्यूरोलॉजिस्ट चुनना चाहिए जिसके साथ आपको सहज महसूस होता हो और जिसे पार्किन्संस के इलाज और पुनर्वास (रिहैब्लिटेशन) का अनुभव हो। इसके साथ ही होलिस्टिक एप्रोच अपनाते हुए आपको दूसरी पैथियों जैसे प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद और योग और उसके साथ आवश्यकतानुसार फिजियोथेरेपी, ऑक्यूपेशन थेरेपी, स्पीच थेरेपी आदि के विशेषज्ञों के भी निरंतर संपर्क में रहना चाहिए। इस तरह इलाज की एक होलिस्टिक नीति बनाएं और उसका दृढ़ता से पालन करें। 
  2. मरीज और परिवार को आपस में ठीक से संवाद करके एक योजना बना लेनी चाहिए कि किस तरह इस समस्या से निबटना है। इस काम के लिए सभी का मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहना बहुत जरूरी इसलिए मरीज और उसके परिवारजनों को किसी प्रशिक्षित सलाहकार की सहायता लेते रहना भी इसमें काफी उपयोगी है। 
  3.  कई बार मरीज को पहले से मानसिक समस्याएं हो सकती हैं जो पार्किन्संस हो जाने पर बढ़ कर सामने आ जाती हैं। कुछ शोधों में यह भी देखा गया है कि अवसाद (डिप्रेशन) के मरीजों को आगे चल कर पार्किन्संस होने की संभावना थोड़ी बढ़ जाती है और कई बार अवसाद (डिप्रेशन) पार्किन्संस का शुरूआती लक्षण भी हो सकता है। इसलिए अच्छे मनोचिकित्सक से सलाह लेना आपकी समस्यायों को काफी कम कर सकता है।(https://www.medicalnewstoday.com/articles/319831#how-is-it-managed-and-treated)।  
  4. पार्किन्संस के लक्षणों को गंभीर होते जाने की गति को धीमा करने में आहार का भी बड़ा महत्व है। इसलिए विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार भोजन चार्ट बनाएं और उसका ठीक से पालन करें। 
  5. यह एक ऐसी बीमारी जिससे मरीज अकेला नहीं जूझ सकता लेकिन यदि उसके परिवारजन और आत्मीयजन कमर कस लें तो चीजें बहुत आसान हो जाती हैं। इसके बावजूद भी यदि मरीज के लिए सहायक की जरूरत हो तो सामर्थ्य होने पर उसमें बिलकुल न हिचकिचाएं। किसी बाहरी सहायक का होना चीजों को बहुत आसान बना देता है और घर के लोग अपना जीवन भी बेहतर ढंग से जी सकते और वे मरीज के लिए और भी सकारात्मक वातावरण बना सकते हैं। 
  6. सोशल ग्रुप मरीज को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रेरित रखने में काफी मदद करते। इसलिए मरीज का सोशल ग्रुप बनाएं, इसके लिए किसी एनजीओ से भी संपर्क किया जा सकता है। 
  7. पार्किन्संस कोई घातक बीमारी नहीं है जो मरीज की जान ले और सही इलाज और समुचित जीवनशैली से बहुत से मरीज दूसरी या तीसरी स्टेज में रहते हुए भी जीवन बिता सकते हैं। यह बात मरीज को समझायी जानी चाहिए ताकि वह सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ खुद को बीमारी से निबटने के लिए तैयार करे। 
  8. संतुलन पार्किन्संस के मरीजों के लिए एक समस्या बन जाता है। इसलिए गिरने से बचाने के लिए कमरे, बाथरूम आदि में बनावट संबंधी बदलाव, खास उपकरणों का इस्तेमाल और सहायक का होना इसमें काफी उपयोगी होता है। 
  9. इस रोग की दवाएं कोई बहुत महंगी नहीं आती लेकिन फिर भी यदि आर्थिक संकट हो तो सरकारी हॉस्पिटल, एनजीओ या स्वयं सहायता समूह बना कर इलाज की व्यवस्था करें लेकिन मरीज को दवा नियमित रूप से दें। 
  10. लोगों से जुड़ें, जागररुकता फैलाएं, एक दूसरे की मदद करें, यदि आपने बीमारी से निबटते हुए कोई समझ विकसित की है तो दूसरे मरीजों तक भी उसे पहुंचाएं। 
अगले लेख में भोजन और जीवनशैली संबंधी कुछ ऐसे उपायों पर चर्चा करेंगे जो पार्किन्संस के मरीज के लिए काफी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। 

क्रमशः 

(डिस्क्लेमर : यह लेख श्रंखला सामान्य जानकारी और जागरुकता के लिए लिखी जा रही है। किसी तरह की चिकित्सकीय सहायता के लिए कृपया विशेषज्ञ से संपर्क करें                 

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